गुरुवार, 17 जनवरी 2013

रघुवर तुमको मेरी लाज

रघुवर तुमको मेरी लाज । 
सदा सदा मैं शरण तिहारी, तुम हो ग़रीब निवाज ॥ 

पतित उधारन विरद तिहारो, श्रवन न सुनी आवाज । 
हूँ तो पतित पुरातन कहिये, पार उतारो जहाज ॥१॥ 

अघ खण्डन दुख भंजन जन के, यही तिहारो काज । 
तुलसीदास पर किरपा कीजे, भक्ति दान देहु आज॥२॥  
– गोस्वामी  तुलसीदास 

स्वर: - पंडित भीमसेन जोशी 






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